Semiconductor Revolution: भारत आज उस मोड़ पर खड़ा है जहां तकनीक केवल विकास का हिस्सा नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और वैश्विक नेतृत्व की कुंजी बन चुकी है। मोबाइल फोन, लैपटॉप, इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा उपकरण और टेलीकॉम जैसी तमाम आधुनिक जरूरतों के पीछे जो सबसे अहम भूमिका निभाती है, वह है सेमीकंडक्टर चिप्स। अब सरकार ने इस क्षेत्र में एक बड़ा कदम उठाते हुए सिलिकॉन कार्बाइड (SiC) वेफर मैन्युफैक्चरिंग को रणनीतिक प्राथमिकता दी है।
SiC वेफर्स क्यों हैं भविष्य की जरूरत?
साधारण सिलिकॉन वेफर्स लंबे समय से इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों का आधार रहे हैं। लेकिन जब बात आती है तेज़, टिकाऊ और ऊर्जा-कुशल तकनीक की, तो SiC वेफर्स बेहतर साबित होते हैं। ये ऊंचे वोल्टेज, ज्यादा तापमान और तेज फ्रीक्वेंसी पर बिना प्रभावित हुए काम कर सकते हैं। यही कारण है कि ये इलेक्ट्रिक वाहनों, डिफेंस सिस्टम, टेलीकॉम और एयरोस्पेस जैसे क्षेत्रों के लिए भविष्य की तकनीक माने जा रहे हैं।
ISM 2.0 और सरकार की नई पहल
भारत सरकार ने 2021 में इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (ISM) शुरू किया था, जिसके तहत 76,000 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया गया। पहले चरण में 10 परियोजनाओं को मंजूरी मिली और अब लगभग पूरा फंड इस्तेमाल हो चुका है। इसके बाद सरकार ISM 2.0 लाने की तैयारी कर रही है और इसमें SiC वेफर्स को खास जगह दी गई है। यह कदम दिखाता है कि भारत अब केवल पारंपरिक तकनीक पर निर्भर नहीं रहना चाहता, बल्कि अगली पीढ़ी की टेक्नोलॉजी में अपनी मजबूत पहचान बनाना चाहता है।
ओडिशा में पहला SiC फेब्रिकेशन यूनिट
भारत के इतिहास में पहली बार SiC वेफर फेब्रिकेशन यूनिट को मंजूरी दी गई है। यह यूनिट ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में बनाई जाएगी। चेन्नई की SicSem Private Limited और स्कॉटलैंड की Clas-SiC Wafer Fab मिलकर 2,066 करोड़ रुपये की लागत से यह प्रोजेक्ट स्थापित कर रही हैं। इस फेब की सालाना क्षमता 60,000 वेफर्स और 96 मिलियन चिप्स पैकेजिंग की होगी। यह सिर्फ एक परियोजना नहीं, बल्कि भारत के लिए एक नया अध्याय है जहां सेमीकंडक्टर निर्माण में देश की वैश्विक मौजूदगी दर्ज होगी।
घरेलू इंडस्ट्री की चुनौतियाँ
हालांकि SiC निर्माण आसान नहीं है। इसमें भारी पूंजी और आधुनिक तकनीक की जरूरत होती है। यही कारण है कि Zoho Group की Silectric Semiconductor ने मैसूरु में प्रस्तावित अपने बड़े SiC कैंपस को रोक दिया। कंपनी का कहना था कि इस बिजनेस के लिए सरकारी सहयोग अनिवार्य है। इस घटना ने साफ कर दिया कि यदि सरकार और उद्योग जगत साथ मिलकर काम करें, तभी भारत इस तकनीक में दुनिया के बड़े देशों को चुनौती दे पाएगा।
रिसर्च और आत्मनिर्भरता की दिशा
भारत के वैज्ञानिक भी इस दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं। पिछले साल रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की Solid State Physics Laboratory ने स्वदेशी तकनीक से 4-इंच SiC वेफर बनाने में सफलता हासिल की। यह उपलब्धि भले ही शुरुआती स्तर की हो, लेकिन यह दर्शाती है कि भारत धीरे-धीरे अपने दम पर SiC तकनीक विकसित करने की क्षमता हासिल कर रहा है।
सिलिकॉन और SiC: दो अलग कहानियाँ
आज भी पारंपरिक सिलिकॉन वेफर्स की मांग सबसे ज्यादा है। ये सस्ते हैं, बड़े पैमाने पर आसानी से बन जाते हैं और माइक्रोचिप्स, सोलर सेल्स व सामान्य इलेक्ट्रॉनिक्स में इनका दबदबा कायम है। लेकिन आने वाले समय में जहां हाई परफॉर्मेंस और पावर इलेक्ट्रॉनिक्स की जरूरत बढ़ेगी, वहां SiC वेफर्स का दबदबा होगा। यानी सिलिकॉन और SiC दोनों की अपनी जगह बनी रहेगी, लेकिन SiC अगली पीढ़ी का हीरो साबित होगा।
निवेश और सरकार की भूमिका
ISM 1.0 में सरकार ने 65,000 करोड़ रुपये सिर्फ चिप निर्माण के लिए आरक्षित किए थे, जिनमें से लगभग 62,900 करोड़ रुपये 10 प्रस्तावों में खर्च हो चुके हैं। अब ISM 2.0 के तहत सरकार को न सिर्फ फंडिंग बढ़ानी होगी बल्कि घरेलू कंपनियों को भी रिसर्च और डेवलपमेंट में मजबूत करना होगा। तभी भारत सेमीकंडक्टर निर्माण में आत्मनिर्भर होकर दुनिया की सप्लाई चेन में बड़ा खिलाड़ी बन पाएगा।
निष्कर्ष: भारत की तकनीकी क्रांति
SiC वेफर निर्माण केवल एक औद्योगिक परियोजना नहीं, बल्कि भारत की तकनीकी क्रांति की नींव है। यह आत्मनिर्भर भारत के उस सपने से जुड़ा है, जहां देश अपनी जरूरतें खुद पूरी करेगा और दुनिया को भी तकनीक मुहैया कराएगा। आने वाले सालों में यदि सरकार, इंडस्ट्री और शोध संस्थान मिलकर इस दिशा में काम करते हैं, तो भारत न सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स बल्कि पूरे सेमीकंडक्टर इकोसिस्टम का वैश्विक हब बन सकता है।
Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारी सार्वजनिक स्रोतों और सरकारी बयानों पर आधारित है। इसका उद्देश्य केवल जानकारी प्रदान करना है, निवेश या किसी अन्य निर्णय के लिए इसे सलाह न माना जाए।
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